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ग़ज़ल
ये कशिश किस की है किस का लुत्फ़ है किस का करम
आज महफ़िल में किसी की 'बेदिल'-ए-ख़ुश-ख़्वाँ भी है
बेदिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बग़ैर उस के ये हैराँ हैं बग़ल देख अपनी ख़ाली हम
कि करवट ले नहीं सकते हैं जूँ तस्वीर-ए-क़ाली हम
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
ग़म नतीजा है ख़ुशी की इंतिहा का ऐ 'कलीम'
दिल की इक इक मौज मौज-ए-शादमानी हो तो क्या
कलीम अहमदाबादी
ग़ज़ल
कलाम-ए-आशिक़ाना सुन के हर शाइ'र ये कहता है
तुम्हारी नज़्म 'सफ़दर' बढ़ गई है नज़्म-ए-'बेदिल' पर